आज रै जमाने मांय

जद लूण सूं लगा’र

सोने तक रो

मौल बध रियो है,

तो म्हानै घणो फिकर

इण बात रो व्है

कै मानवता रो मौल

क्यूं घट रियो है?

स्रोत
  • पोथी : जागती जोत अक्टूबर 1981 ,
  • सिरजक : बाबूलाल संखलेचा ,
  • संपादक : चन्द्रदान चारण ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृत अकादमी, बीकानेर