दंग्यां में मोती आरया, धरती नैं केसां सार्या

सुनैरी चूंदड़ी रै घूंघरा सण बाज्या

बेलां कै हींदें बायरो मचोला ल्यायो रे

फागण आयो रे

पणघट पै रंग छायो, गीतां में चंग आयो

म्हूं बीत्या दिन भूल्यो, रसियो झूम गायो

सरसू पै म्हारे लेखूं, घणूं सोनू छायो रे

फागण आयो रे

गोईरे बैठी गायां, फागण गाती बायां

सुहाणी घणी लागै, कोयल बोलै टायां

सकुळ आंबो फूल्यो, भीणी गंध ल्यायो रे

फागण आयो रे

कण-कण फड़कै छै, रे डोड्यां तड़कै छै

अै सीळी-सीळी रातां, पानड़ा खड़कै छै

मरोड़ा खाती मचली, उमंगां ल्यायो रे

फागण आयो रे

स्रोत
  • पोथी : राजस्थान के कवि ,
  • सिरजक : रघुराजसिंह हाड़ा ,
  • संपादक : अनिल गुप्ता ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी बीकानेर ,
  • संस्करण : तीसरा