एवु तौ कारै ने थ्यु

के पैंतालिस् वरं काड़वा पुटै भी

सौरं’ज रेता

सौरं वजु सारा करता

नानं मौटं रमकडं थकी रमता

टगी करता

लड़ाता

एक बीजा थकी

भोरवाई जाता

बेस्यार मैटी-मैटी

सिकणी सिकणी वातै हामरी

नै कोय भी पामणु घेरै आवै

तो मांगी लेता पईसा

ना केवा पुटै भी

पण,

यो हास है

कड़वु हास।

स्रोत
  • पोथी : वागड़ अंचल री राजस्थानी कवितावां ,
  • सिरजक : भविष्य दत्त ‘भविष्य’ ,
  • संपादक : ज्योतिपुंज ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृति अकादनी बीकानेर ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण