एक सोर्ओ तो घाँटा खाय

नै बीजो हाँटा सूव्वे।

बापड़ी सम्पी सुरी बेटी-बेटी

फाड़ रोटा हारू रोव्वे।

गुमनों बापड़ो नेर्ए ज़ावा,

वाट मजूरी नी जोव्वे।

थावरी बेटी-बेटी नेर्ए,

फाटा घाघरा-हाल्ला धोव्वे।

डायो ऐवो डाँड नेर्ए,

रोज़ शेर में सिनीमा जोव्वे

‘लालियो' आणा घोर नी दशा -

देकी-देकी नै पे-पे आँ ऊव्वे रोव्वे।

स्रोत
  • पोथी : वागड़ अंचल री ,
  • सिरजक : ललित लहरी ,
  • संपादक : ज्योतिपुंज ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी ,
  • संस्करण : Prtham