जीवणो-मरणो

नेम है

प्रकृति रा

अर आवणो-जावणो

रीत निभावणो

नेम है समाज राI

आओ-

आपां दु:ख-सुख

बांटा-बंटावां

अर आपरै भीतर

मिनखपणै री

पौध लगावां।

स्रोत
  • सिरजक : दीनदयाल शर्मा ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी