पत्रकार घणो तकड़ो हुवै

धोरां'ळै, लाल मकोड़ै दांई

भूखो तिरसो,

तावड़ै में

भाज्यो फिरै

थकै कोनीं...

धोरियां सूं

जद जेठ रै महीनै में

लाटां निकळती

सामीं दिस्सै,

तद बो

बिल मांय सूं

माटी काढ-काढ'र

बारै नाखै!

दो च्यार गेड़ा

ताती रेत पर

इन्नै-बिन्नै काटै

अर पाछो काम लाग जावै।

पत्रकार ईंयाई

दिन देखै, ना रात

बस भाज्यो फिरै,

लिखै...

बिना डरे,

बिना थके।

स्रोत
  • पोथी : बेटी ,
  • सिरजक : मनोजकुमार स्वामी ,
  • प्रकाशक : बोधि प्रकाशन ,
  • संस्करण : Pratham