मोटोड़ो साही सैनापति,
अकबर रै घर रो रखवाळो।
नवरतना मैं लो एक रतन,
दिल्लीपति रो सागी साळो॥
आयो है आज बटाउ ज्यूँ,
राणैजी रै आमेर धणी।
मेवाड़ी नाथ पावणै री,
मोटी मिजमानी करी घणी॥
सिरदार खड़्या हा स्वागत में,
हो रयी राजा री खातरियाँ।
पोसाकां पैरी परियाँ सी,
पायल झणकाई पातरिया॥
जद थाळ बिराज्या जीमण नै,
भेळो युवराज अमर आयो।
क्यूँ नयीं पधार्या राणोजी,
आमेरै पाछो बूझायो॥
सिरदाराँ अरज करी राजा,
सिर दूखै है राणैजी रो।
नयीं आज अरोगण होवैलो,
मेवाड़ धणी रो जी दोरो॥
मुखड़ो बळ-बळतै खीरै ज्यूँ,
सुणताँ ही मान हुयो रातो।
जे पैहली आ जाणी हूँती,
हूँ ओषध सागै ले आतो॥
सळ पड़ग्या तपी लिलाड़ी पर,
मेवाड़ै करी नयीं आछी।
घर आयाँ रो अपमान कियो,
खांची है बात घणी पाछी॥
म्हांरो नातो अकबर सागै,
राणोजी हींणा मानै है।
पण मानसिंह रो तेज आज,
भारत में कुण स्यूँ छानै है॥
कर नोरो हाताँ स्यूं पातळ,
जे एक कवो यी दे ज्यातो।
तो, हिंये अणैसो नयीं होतो,
सनमान मान रो रै ज्यातो॥
मोटै राणै नै कर दीज्यो,
सिरदाराँ अरज इती म्हाँरी।
म्हे नयीं भूलस्याँ बस पड़ताँ,
गढ पतियाँ मिजमानी थाँरी॥
है अन्न देव नै निमस्कार,
ठोकर नयीं माराँ भाणा नै।
पण जी सीरै री जड़ी, आय-
बैगी देवाँला राणा नै॥
इण गढ में उण दिन जीमाँला,
माथै री पीड़ मिटाँवाँला।
मन में ओ काँटो कसकैलो,
जद तक पूठा नयीं आँवाँला॥
कह मान महीप खड़ा होग्या,
रातो रग-रग में उफण रयो।
भीतर स्यूँ निसर्या राणोजी,
मुड़तै राजा नै रोक कयो॥
कछवा कोप्याँ कांपै कोनी,
मेवाड़ी धरती काठी है।
जे मिजमानी नयीं रुची राव,
घिरतां नै हळदी घाटी है॥
मन रो काँटो निसरै कोनी,
राता पीळा हो रीस कियाँ।
म्हे अहड़ा कँवळा फूल नयीं,
मुरझावाँ तातै बायरियाँ॥
रवि री किरणा नाडा सोसै,
समदाँ रो नीर ढाबणो है।
मेवाड़ नयीं मीठो गुटको,
मिरजाजी आक चाबणो है॥
कछवाँ रो करम इस्यो माड़ो,
सामै उभ्याँ ही लाज मराँ।
भोजन में भेळा बैठ मान,
कुँकर थाँरी मनवार कराँ॥
थे मरजादा री लीक तोड़,
महाँ स्यूँ तो न्यारा होग्या हो।
अकबर बणग्यो है बैनोयीं,
दिल्ली रा प्यारा होग्या हो॥
मोटै खूँटे स्यूँ बैन बँधी,
मोटो आमेर ठिकाणो है।
मोगळ रै घर में जलमै रो,
थाँरै घर में नानाणो है॥
कछवा थे मोटा घणा हुया,
भारत री धरती डोलै है।
थाँरै कँठाँ में अबै मान,
दिल्लीपति रो बळ बोलै है॥
मोगळ स्यूँ खून रळ्यो थाँरो,
म्हाँरो खाँडां रो नातो है।
आमेरा लीक नुयीं कोनी,
दिल्ली स्यूँ बोदो खातो है॥
करणी में कसर मती राख्या,
कर लीज्यो थाँरा मन चाया।
घिरताँ लूँठै हेतूलै नै,
हिमायत में लेता आया॥
आमेर धणी बोल्या राणा,
बाताँ बाकी रै ज्यावैली।
म्हाँ घिरताँ भार इतो पड़सी,
आ धरती धिसकी जावैली॥
थाळी बैठा अपमान करो,
घर में आये नै भाँडो हो।
थे जियाँ उछाळै भाटै नै,
आयेयी माथो माँडो हो॥
ओ नूँतो हळदी घाटी रो,
मेवाड़याँ नै दुख देवैलो।
उजळपै वाळो अहंकार,
रगताँ स्यूँ धरती भेवैलो॥
म्हाँतो मोगळ री सत्ता नै,
म्हाँरी ही सगती जाणी है।
भारत में भेळा आय बस्या,
आपस में जूझ्याँ हाणी है॥
अकबर रै घर रजपूताँ री,
मुगळाँ री स्यान बराबर है।
भारत रै सगळा धरमाँ नै,
सुळतानी मान बराबर है
दो जबरी जाताँ एक हुवै,
ओ खून खिंडावण रुक ज्यावै।
म्हे चावाँ मोटोड़ा माथा,
दिल्ली रै आगै झुक ज्यावै॥
जे मिटै मुगळ स्यूँ मेळ कियां,
खोटो, बो धरम घणो छोटो।
मरजादा बाधा ज्यूँ लागै,
है मिनख-पणो सबस्यूँ मोटो॥
ओ पण है म्हांरो, अकबर नै,
पूरो समराट वणावाँला।
जीताँ पण पाछो नयीं धरां,
आगै ही बधता जावाँला॥
जद तक बिखर्योड़ी सत्तावाँ,
दिल्ली रै आगै नमै नयीं।
म्हे सोरो सांस नयीं लेस्याँ,
तरवार मान री थमै नयीं॥
आया नयीं अहड़ी चींत अठै,
थाँ म्हाँस्यूँ बैर बसायो है।
अपमान मान रो कर राणा,
दिल्ली रो मान घटायो है॥
समदाँ सिरसो बळ कूँत लियो,
मन में ही बणग्या हो मोटा।
मेवाड़ धरा रा छत्रपति,
समराटाँ स्यूँ कोनी छोटा॥
पण एक मुलक री धरती पर,
दो-दो समराट रवै कोनी।
दिल्ली स्यूँ दूजी सत्ता नै,
भारत में मान सवै कोनी॥
राणोजी बोल्या, म्हे राजा,
थाँरै मारग नयीं बैवांला।
थे सुपनै में ही मत चींत्या,
दिल्ली नै सिर पर सैवाँला॥
आखो यी भारत एक बणै,
इण स्यूँ तो आछी बात किसी।
पण गळै गुलामी धरम मिटै,
आ नीती आतमघात जिसी॥
पर धर रा आया मुगळ जका,
हिंदवाणै रा हकदार बणै।
मिरजा राजा कुण दिन खातर,
भारत री माँवां लाल जणै॥
खाँडै रै जोर जेर करल्यो,
मत जाणो म्हांने इता हेच।
म्हाँस्यूँ आ मान हुवै कोनी,
संधी करल्यां सनमान बेच॥
मरज्यावाँ पाणी मरै नयीं,
कितरायी विषधर डसग्या है।
थाँ जिस्या मोकळा धराधीस,
मेवाड़्यां सागै खसग्या है॥
सिर झुकै धणी है अेकलिंग,
दूजो कोयी सिर धणी नयीं।
पातळ बँध ज्यावै बा सांकळ,
राजा मुगळाँ रै बणी नयीं॥
थे मानो अकबर समदरसी,
सै धरम बराबर, डर कोनी।
पण म्हे माना दिल्ली रो पति,
पीढी-पीढी अकबर कोनी॥
पाणीपत नै कुँकर भूलाँ,
पातळ रा प्राण हुवै दोसी।
कुण जाणै आगै फेर कोयी,
खिलजी, महमूद नयीं होसी॥
म्हाँरै तो हिंवड़ै सतियाँ रै,
जोहर री लपटाँ जागै है।
अण गिणती देवळ देवां रा,
टूट्योड़ा आँख्या आगै है॥
थे तो मुगळाँ रा चाकर हो,
थाँरै मरजादा धरम किस्यो।
बोलण जोगायी नयीं मान,
है मिनख पणै रो मरम किस्यो॥
मिरजा थे आधा रैग्या हो,
जद बात करो हो आज इसी।
जजियो भोगिणियाँ नै बूझो,
होवै हिंवड़ाँ में पीड़ किसी॥
संकट है धरा धरम ऊपर,
मोगळ री सत्ता मोटी रो।
म्हाँ झुक्याँ रूखाळो कुण होसी,
हिन्दू रै सिर री चोटी रो॥
जद ताँयीं हरियळ धज नीचै,
काजी कानून चलावैला।
मेवाड़ी भुज केसरिये री,
रूखवाळी आडा आवैला॥
मोगळ रै बळ री आँधी में,
बळती लो नयीं बुझण द्याँला।
मरजादा मान मिटै कोनी,
बदळै में माथा देद्याँला॥
म्हे जूझाँ जकी लकीरां पर,
दिल्ली स्यूँ पीढ्याँ जूझैली।
म्हाँरै माथा रो मोल ‘मान’
जुग-जुग तक धरती बूझैली॥
मोरुसो हक मुगळाँ वाळा,
जद तक दिल्ली पर रैवैला।
मेवाड़ी खाँडा खड़कैला,
रगताँ रा नाळा बैवैला॥
कह दीज्यो थाँरै धणियाँ नै,
पातळ लुळतो नयीं दिखैलो।
बैगायी घिरज्यो स्वागत नै,
राजा मेवाड़ अडिकै लो॥
अपमान भर्योड़ो मान मुड़्यो,
बैग्या रगताँ रा परनाळा।
हळदी घाटी री लाय जकी,
आमेरै रै मन री ज्वाळा॥
बो धूँवो उठ्यो अहड़ो काळो,
अन्धारो पाटो पाट रळ्यो।
आँधी रो गोट इस्यो आयो,
धर धूजी जाणै सेस टळ्यो॥
काजळिया बादळ दळ उमड़्यो,
हिंदाणो सूरज घिरियोड़ो।
भुरजालो भूप भाखराँ में,
भटकै हो बखत घणो ओड़ो॥
बो दिन अहड़ो हो धरती रा,
आधार सिरकता दिखै हा।
मेवाड़ धणी रा फूल जिस्या,
टाबरिया भूखां बिळखै हा॥
कोपै कछवै रो भार सयो
धन-धन पातळ वाळी छाती।
आखड़ताँ रो आधार हुयी,
कमधज पीथळ वाळी पाती॥
भीलाँ रै भेळा राणोजी,
पग-पग पर बीखो भोग लियो।
अण चींत्योड़ी ओखी काटी,
पण माथो नीचो नयीं कियो॥
दिन पळट्या पाछा ‘भामा’ री,
बा भेट हुयी इतिहास अमर।
मुकती रै गीत गगन गूँज्यो,
मेवाड़ै छेड़्यो फेर समर॥
लोप्योड़ी धरती लेवण नै,
जूझै हा जोधा कोप्योड़ा।
उखड़ै हा झंडा जग्याँ-जग्याँ,
महाराज मान रा रोप्योड़ा॥
दिल्ली में हळचळ सी मचगी,
संदेस हार रा हलकारा।
आमेर धणी री छाती में,
सुणतांयीं सुळग्या अंगारा॥
साही सैनापति बा सुण ली,
मन भरग्यो बाकी नयीं रयी।
चिंता में डूबै अकबर नै,
मुजरो कर उभै मान कयी॥
भारत रा मोटा महाबळी,
आयोड़ी धरती जावै है।
मेवाड़ी पाछा मुड़ग्या है,
मँडियोड़ा खोज मिटावै है॥
हार्योड़ा हल्लो बोल्यो है,
जागी है सोयोड़ी माटी।
दिल्ली रै बळ नै ‘दिल्ली पत’
हेला मारै हळदी घाटी॥
जे आज घिराँला नयीं पूठा,
सो कियो अकारथ ही ज्यासी।
आँपणलै हाताँ रा खाँडा,
हिंदवाणै हळका हो ज्यासी॥
अकबर रो तेज मिट्यो कोनी,
नयीं मान हुयो है बैरागी।
अै भालाँळा भुज सागी है,
म्हे सागी हाँ, राणो सागी॥
उदियाणै में अपमान हुयो,
बो अजै हिंये नै सालै है।
पातळ री हातळ झालण नै,
मन में लहराँ सी चालै है॥
हळदीघाटी नै रँगी जकी,
राती धाराँ ओजूँ बैसी।
का मान रवैलो धरती पर,
का मेवाड़ी राणो रैसी॥
म्हाँ जीताँ पातळ राज करै,
मेवाड़्याँ रो मालक बाजै।
आलीजा, बात घणी माड़ी,
म्हे लाजाँ थारो बळ लाजै॥
अकबर बोल्यो, म्हे कोपाँ तो,
धर मंथद्यां कुण आडो आवै।
दिल्ली रै बळ रै धक्कै स्यूँ,
सावाँ रा तखत उळट ज्यावै॥
जे चावाँ तो एकर राजा,
अवनी नै नाच नचा देवाँ।
खाँडा रो बळ थोड़ो कोनी,
म्हे हा-हाकार मचा देवाँ।
पण राणै रै आतमबळ स्यूं,
भुरजाळा भेट सकै कोनी।
आमेरा भाळाँ रा भळका,
उण तप नै मेट सकै कोनी॥
पातळ जोधोयी नयीं मान,
समरथ त्यागी बैरागी है।
इण मुलक समूचै री आँख्याँ,
उण अेक मिनख पर लागी है॥
खाँडा री नयीं लड़ाई आ,
बिसवासाँ रो रण ठणग्यो है।
बो हिंदवा सूरज अण गण री,
आसा रो दिवळो बणग्यो है॥
छोटी सी धर रो धणी आज,
हिंवड़ो आखै हिन्दवाणै रो।
अकबर स्यूँ मान घणो राजा,
लोकाँ रै मन में राणै रो॥
त्यागी रै तप रो तेज, जको,
खाँडां स्यूँ रोक्याँ कियां रूकै।
म्हाँरो तो माथो अण-जाणै,
पातळ नै आपो आप झुकै॥
दिल्ली दरबार्याँ री आँख्याँ,
बो नाँव लियाँ श्रधा जागै।
उण हस्ती नै मेटी चायाँ,
पीढी-पीढी पातळ जागै॥
हिन्दू चावै हिन्दूपत नै,
बळ रा बाँध्या मन रूकै नयीं।
गोडाँ रै कानी झुकै ‘मान’
माथा मगरां नै झुकै नयीं॥
जुध्दां स्यूं हिंया बंधै कोनी,
अै बैर बधण वाळा खेला।
ओ मारग बो नयीं मुगळ बसै,
हिंदवाण रळ हिन्दू भेला॥
थे मान मुगल रा थम्भा हो,
हिन्दू रो हिंवड़ो पातळ है।
अकबर बिसवास समूचाँ रो,
बण ज्यावै तो साचो बळ है॥
मनड़ो पढ़ लियो मानखै रो,
आँख्याँ री भाषा जाणी है।
अड़पो अब आछो नयीं लागै,
पाछो मुड़णै री ठाणी है॥
परदेसी मुगळ हुवै देसी,
भारत नै एक कियो चावां।
पातळ अकबर नयीं मान मिटै,
सै एक डोर में बँध ज्यावाँ।
म्हाँरा तो प्राण अडिकै है,
कुण जाणै बो दिन कद आसी।
जद मिनख, मिनख नै समझैलो,
हरियळ केसरिया रळ ज्यासी॥
बरसाँ स्यूँ मेटण री चींतां,
हिन्दू मोमिन री खायी नै।
जाणै कद समझैली दुनियाँ,
अकबर रै दीन इलायी नै॥