दिन उगतां हीं एक डाकियो एक्सप्रेस चिठ्ठी ल्याकर दी
घणी खुसी से खोल' र बाँची
नगर भगतपुर जिला जगतपुर
भोत जोर को पसुआं को मेळो भररयो है
बीं मेळै में भोत जोर कै कवियाँ को सम्मेलन होसी
बीं कवि सम्मेलन में थानैं भी आणूं है
गाड़ी भाड़ो तो द्याँगा ही
और कोई दस्तूर हुवै सो थे लिख दीज्यो
चिठ्ठी बाँच'र कई तरै का भाव उठयाया
पसु मेळै में कवि सम्मेलन! के मतबल है?
के कवि-सम्मेलन सुणबानैं पसु ही पसु भेळा होवैगा!
यानी मिनखां के मेळ में तो कविता बोळी ही होली
इब पसुआं में भी तो जागृति करणीं चाये!
पसुआं को मेळो भी तो जोर को लिख्यो है
जे कोई जोर को पसू या कविता कैती बखत लैर सैं
कवि कै ढूंढ मारज्यागो तो
कविजी गुरगंडी खाता नीचे आवैगा!
और बीर रस की कविता नैं नीचे पड्या पड्या गावैगा!
ओ! ई खातर ही साफ लिखी है क
भौत जोर कै कवियां को सम्मेलन होसी
पण आपण तो सरीर में ज्यान ई कोनीं
आपां ई कवि सम्मेलन में कियां निभाँगा
(पण) देखी जासी, राम करैगो सो होवैगी
आपांनैं तो रिपिया चाये
पीछै प्रापां पसुआं के मेळे में हीं क्यूँ
मुरदां के मेळे मुसांण में भी जाकै कविता बोल्यावां'
पाछी चिठ्ठी लिखी- च्यारसौ रिपिया गाड़ी भाड़ो ल्यूंगा
पसुआं को कवि-सम्मेलन है
मिनखां को होतो तो क्यूं कम भी ले लेतो'
चौथे दिन ही फट बावड़ती चिठ्ठी आई
फल्डाफाड़ जबाब लिख्यो थो
'ढाई सौ रिपिया लेणां हो तो आज्यायो
और नहीं चुप्पी खाज्यायो!'
मैं फट तार दियो 'आरयो हूँ!'
दस बारा दिन पीछे ही बो सम्मेलन थो
बीं दिन मैं गाड़ी से मोटर में- मोटर सें गाडी में-
चडतो'र उतरतो नगर भरतपुर संज्या च्यार बजेसी पूंच्यो
बेरो पाड्यो,
दिखाणादी जोड़ी कै स्हारै पसु को मेळो भररयो थो
बींटो पेटी तार बठे मैं खड़यो खड़यो देखणनैं लाग्यो
क कद संयोजकजी फुलां की माळा ल्याकर मनैं प्हरावै
और जीप सै मनैं गेस्ट हाऊस ले ज्यावै
तातो पाणी करा न्हुवावै, ताती ताती कॉफी प्यावै
कद संयोजकजी फूलां की माळा ल्यावै!
(पण) बठे किसा संयोजकजी था!
कानी कानी हरियाणैं का नारा नाथ तुड़ाकै भाजै
जांकै लेरयां बांका मालिक
मोरी पकड़यां लटक्या लटक्या चालै सागै
बूडी गायां- बाछा-बाछी, काळी काळी भैंसां आछी
तेरै सौ बर जच्चै तो लेज्या भाया-
पण दियां पिछै ल्यूंगा नहिं पाछी!
ऊंट खडया अल्डाटा मारै
भेड़ बकरियाँ त्राहिमाम त्राहिमाम् पुकारै
यूं च्यारूं कानी मेळै में भांत भांत का पसू खड्या था
च्यारू' मेर देखकै सोची-गध्या कोनी बिकणां आया
वै इब तांणी कोनी दीख्या
पीछे मैं मेरै कानी हीं देख्यो ओर जोर से हांस्यो
गधां बिना तो पसूत्रों को मेळो पूरो ही कोनी होवै
च्यारू कानी आंख फाड़कै देखूं टक टक
पण कोन्यां दीख्या संयोजक
एक भागतै बाछड़िये की मेरै विस्तरबंद के माँई टांग उळजगी
कैयाँ जैयां बा काडी, तो सूटकेस पे गोबर करगो
जणां करम नैं रोतो रोतो
बींपै माटी गेर खोरियै से रगड़णनैं नीचे बैठ्यो
(तो) सरकस की सी पढ़ी पढ़ाई बकरी आकै
मेरै सिर पै दोन्यू खुर ग्रागला टेककै सीदी होगी
बीने झटपट झटको देकै परै बगाई
खड यो हो' र बीड़ी सिलगाई
(तो) एक भेड़ मेरी टांगा कै-
नीचे सैं होकर को सीदी रेस लगाई
ऐंयॉं सै पसु जद मेरो स्वागत कर धाप्या
संज्या पड़गी आसमान में तारा चिलक्या
जद कोई यूँ जातो संयोजकजी को मूं माथो दीख्यो
बै मन्ने झट एक धरमसाळा में लेगा
जठे और भी कविजी पैल्यों से भेळा था
बोल्या इब कवि सम्मेलन में देर नहीं है
सो थे पैल्यां थोड़ो थोड़ो दूद चढ़ाल्यो
बोलो कैयां कैयां ल्योगा?
गाय को क भैंस को क बस खाली बकरी को?
मुगदरजी बोल्या मन्नें तो ढ़ाई सेर भैंस को ल्याद्यो
कही सूतळीदास मनें बकरी को प्याद्यो
ढिलमिलजी बोल्या मन्ने गाय को मंगाद्यो
मन्नें पूछयो- मैं बोल्यो-
मैं खडयो खडयो रस्ते में तीन्यां को पी आयो
मन्नै कवि सम्मेलन के मंच पै पुचाद्यो!
जद नौ बज के साठ मिनट पै कवि सम्मेलन सुरु हुयो
तो - भौत घणीं दरियां बिछरी थी
जां पै बैठ या था हज्जारां लोग लाठियाँ ले ले करकै
जांकै पीछे लोग खड्या था-
आप आप कै ज्यानवरां की मोरी पकड याँ
बाँके भी लैर् यां नैं कोई चढ्या ऊंट पै
अर कोई घोड़े पै, भैंसे पै कोई चढ़ सम्मेलन सुणबा आया था
सभापतीजी आसण मांडयो
सैं सैं पैल्यां कवि मूसळजी
एक वीर रस की कविता यूँ बोलण लाग्या
अर धरती ने आसमान से तोलण लाग्या
झट झट फट फट-गोडरेज का सा ताळा यूँ खोलण लाग्या
अरे चीन तू क्या बकता है
तू मेरी भू पर तकता है!
इतणी सुणतां हीं बस सुणबाळा झट टोक्यो!
अरे बैठज्यां भू का बच्चा!
भारत मां नैं भू कैर् यो है! थोड़ी सी भी सरम नहीं है!
कवि मूसळजी ओज्यूं बोल्या-थे भू को मतलब नहिं समज्या देखो -..
'बस चुप रैज्या
जायोड़ो काल को, आज भू को मतलब समझावण आयो
अठे भुवां के पोता होगा!'
कविजी बोल्या
अच्छा अब मैं एक नई रचना पढ़ता हूँ
हम फौलादी वीर चीन का चूरा कर देंगे
कूरा, खुरा, गूरा, घूरा, ङूरा कर देंगे
हम फौलादी वीर चीन का चूरा कर देंगे!”
इतणै में लैर् यांसी आकै एक सांड जोर से टांडयो
सुणतां हीं कविता को पानूं नीचे पड़गो
कविजी बै जा है बै जा है!
इबकाळे कविता बोलण नैं गीतकार नरसीजी आया
ओरे नरसी तन्नैं गांयां सरसी
पबलिक में सैं एक जणू चुपकै सी बोल्यो
भात भरण तन्नैं आयां सरसी
इतणैं में नरसीजी विदक्या
के तो भात भराल्यो र के कविता सुणाल्यो!
इबकै मेरो नम्बर आयो
(मैं) एक टांग में पैर पंजामू
अर दूजी टांग मैं जांगियो पैरयां
छत्तो तांण, हास्य रस की कविता यूं बोलण लाग्यो
इबकै छींको- कितणूं हीं छींको छत्ते पै छींक पड़ैगी
इबकै छींको - इबकै केळा का छूंतका अठीनैं फींको
कविता सुणतां हीं पबलिक 'सीरियस' होगी
सोची कुछ कैतांहीं कविजी छत्तै की सिर में धर देगा
जणां लोग गुमसुम भाषा सा
सुणबो करया न बोल्या क्यूं बी
मैं ओज्यू' बोल्यो - रै बेटी का बापो
हास्यरस की कविता पढरय्यो हूँ क्यूं तो हांसो
हां हांसो देखां”
पण कैणैं सैं कुण हांसै थो
सै सोचै था हांस्या अर छत्तै की लागी
ई हांसी में के काडांगा!
मैं 'चुप चाप बैठगो पाछो
या कविता कैतां सुणतां बारा बजगा
मेरो लंबर आवै अर से गुम सुम होज्या
कई जणां बैठया ऊंगै था और कई आडा होगा था
म्हाँटा सूत्या सूत्या ही हेला मारै था-
'वा वा! ऐयां की ही एक-दो और आंणदे!
वा वा या भी आछी लागी एक इसीसी और फींकदे!'
के बेरो सुपनैं में बोलै था क सांपरत!
दो का डंका लाग्या, संयोजकजी बोल्या-
इब सम्मेलन खतम हुवै है
से कबियाँ नैं भौत भौत धनवाद देऊ हूँ
नहीं बात भी पूरी होई जीं पैल्लां हीं
आप आपका ले रुमालिया चादर, गमछा, साफी, धोती
सत्तर अस्सी जणां मच कै कानी
ऐंयां भाग्या जाणैं कवियां नैं बांधकर मारसी
कवि-सम्मेलन खतम हुयो है
क या कोई फ्रंटियर मेल ठेसन पे आगी!
और सीट शेकरण नैं जाणैं
थर्ड क्लास कै मुसाफरां की भीड़ एक डब्बे में भागी
मेरो पग चिथतां हीं मैं जोर सैं पुकारयो
रै बारै देखो मन्नैं तो दाब लियो रे
संयोजकजी मेरो हाथ पकड़कै खींच्यो
थे इन्नैं आज्यावो, अठे मंच पै मेळो देखणियां सोवैगा!
थारै सोणैं खातर न्यारो तंबू आगे बँधवायो है
मैं बोल्यो मन्नै थारैं तबू को माँई कोन्यां सोणू
मन्नैं मेरा रिपिया देदयो— मैं पली गाडी सैं जास्यूं
दो एक जणा और भी मेरै सागै होगा
संयोजक जी हेलो मार् यो- रामेसरिया!
सब कवियाँ की फीस चुकादे लिया अठे ही
पांच मिन्ट में रामेसरियो
चूणैं कै चूणैं नैं हीं टिचकारी दे हांकतो लियायो
संयोजक जी बोल्या-
ढाई सौ हाळा नैं तो ये ब्यावरणसार भैंस पकड़ादे
और डेडसो हाळा नैं ये गा सम्हळादे
आसपास से आवणियाँ नैं ये ठालड़ बकरी पकड़ादे!
लेज्यावो सा! मैं बोल्यो मैं तो भरपाई
एक भैंस तो सत्रा बरसा पैल्यां सैं हीं खड़ी चरै है
और दूसरी लेज्याकर कुरण करै लड़ाई
मैं तो मेरी फीस फास सगळी भरपाई