घणो प्यार करो छो

थां म्हँईं

चाहो छो

प्राणां सूं बी ज्यादा

थां का प्यार का समन्दर नें

अगस्त्य की नाईं

एक ही घूंट में

न्हँ पी’र

बूंद-बूंद भर

चाहूं छूं

चिड़ी की नाई

चोंच सूं

पीबो

फेर

भीतर ही भीतर

मथ-मथ ऊंनें

सारो हलाहल

रमा लूं म्हारा कण्ठ में

अर

सारो अमरित

घोळ द्यू

थांका होटां में

जीं सूं थां

सारा जमाना के ताईं

दे सको खुसी का बोल

गा सको

परेम का गीत

सदां-सदां।

स्रोत
  • पोथी : राजस्थली ,
  • सिरजक : कृष्णा कुमारी ‘कमसिन’ ,
  • संपादक : श्याम महर्षि ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी साहित्य संस्कृति पीठ