घटी ने घर्राटे

गाय ने रंबातै

सासुजी ना झीणा सुर थकी

जागी

नाई ने

मैं

भगवान ने ककूं नौ सांटौ नाक्यौ

नै

मारे लिलाड़ मैं टिलू करी नै

उगमंणा अंगास ना

कास मै जो यू

तो शारै बाजु

हिंगलु दुलणु थकू है।

कंकु नो

मोटो सांदलो करी नै।

परबात

हिंगलु वरणी

हाडी पैरी नै

रमझम

झाझरिये-झमकावती आवी रई ती।

स्रोत
  • पोथी : वागड़ अंचल री राजस्थानी कवितावां ,
  • सिरजक : देवी लाल जानी ,
  • संपादक : ज्योतिपुंज ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृति अकादनी बीकानेर ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण