म्हारै अठै’ई

नूंवी परम्परा बणी है

म्हे म्हारै दोस्त रो

जाण-पिछाण वाळां रो

सनमान करां

म्हारो दोस्त

जाण-पिछाणवाळो

सनमान करै

म्हारो।

कदैई चुकां नीं

साहित्य-रत्न

साहित्य-श्री

साहित्य-शिरोमणी रै सनमान सूं

पुरस्कार बांटा आपस में

फेरूं चुकां कियां।

साहित्य सेवा रै नाम रां

तकमा

सिल्डां

प्रशस्ति-पत्रां सूं

लदग्या हां

अर

नूंवी परम्परा

अमर-बेल दांई फैल रैयी है।

स्रोत
  • पोथी : जोत अर उजास ,
  • सिरजक : रतन ‘राहगीर’ ,
  • प्रकाशक : युवा सिंधी विकास समिति