म्हारै अठै’ई
नूंवी परम्परा बणी है
म्हे म्हारै दोस्त रो
जाण-पिछाण वाळां रो
सनमान करां
म्हारो दोस्त
जाण-पिछाणवाळो
सनमान करै
म्हारो।
कदैई चुकां नीं
साहित्य-रत्न
साहित्य-श्री
साहित्य-शिरोमणी रै सनमान सूं
पुरस्कार बांटा आपस में
फेरूं चुकां कियां।
साहित्य सेवा रै नाम रां
तकमा
सिल्डां
प्रशस्ति-पत्रां सूं
लदग्या हां
अर
नूंवी परम्परा
अमर-बेल दांई फैल रैयी है।