तू कतनी खूब खुलै छै, पाणी में चांद घुळै छै
थारी चाल असी ओ मजेजण थाळी में मूंग ढुळै छै।
अस्या लागै छणगाळा डील का यै तोड़
जाणै मेळा में मस्ताती दोय भायेल्यां की जोड़
कुण नपै थं सूं अर कुण पाळै होड़,
ठग्यौ रहग्यौ देख चितेरौ अर चारण चुगलै छै।
ऊजळा ललाट पै पसीना का पड़ाव
जाणै मूरती पै ठहर गयौ होवै सपड़ाव
काच मांही तरै छै कुंवार हाव-भाव,
पहली तौ दै नेह कौ नूतौ अर फेरूं बदलै छै।
नींद का नशा में डूबी डूबी थारी आंख
नमळी पलक जाणै पंखेरू की पांख
हेताळू-सी होर अेक बार अठी झांक,
अमग रही जाणै गंगाजी जद दो होठ खुलै छै।