धरण हेक धारणा, पार परमोद अपंपर।

साच-वाच संजमी, वाह करै भागल पर।

मताजीत मनजीत, सेवगिरा पख साचौ।

सुणे हाक सात्रवा, पाल दयै पग-पाछौ।

निडर सधर नरलोभ, वैर जूना उघरावै।

पारथिया सिध पाल, चतै नाकार लावै।

विकळ मन हुवै नह समर वस, परदुख कापण अडगपण।

नह करै अध्रम जुध कळह नड़, कहियां नरवाहण करण॥

दांमा काचा दै, पाल मग वै परियां रै।

वाळै छूटा ऊतन, विखौ सरणायत ज्यां रै।

हिचतां दळां हरोल, पाल वांकां पाधोरण।

आप भ्रखै अलीण, रहै नर कपट नरेहण।

राजसी पणै मोद रखै, खाट खाय निज खाग री।

यळ करै प्रवाडा रवि उदै, सदा हांम सोभाग री॥

काछ वाच निकळंक, जती परनार जोवै।

जोह अहळ नह जाय, कळह नह जीव लुकोवै।

वगै गजर जिण बखत, अंग आजौ नह आंणै।

कहणी रहणी कमंध, पाल जोगमत पछांणै।

चारणा वरण संकट सुणै, लाख बात अंजळ लै।

कमंध यळ सीस राखण कथां, घणां खळां खपरां घलै॥

रूपनाथ रौ हुकम, रखै सब ही दिन धू पर।

भावी समरथ कांम, वणै जद गिणै सरोपर।

सुणियां चारण सबद, मिळै ऊठे कुळ मंडण।

है किंवाड़ हिंदुआंण, पाल मेचांण विहंडण।

सुरभियां ग्रहण श्रवणे सुणे, दूरस छोड़ावण दाखड़ी।

सिध मरद पाल धांधल सुतन, खटतीसां आखड़ी॥

स्रोत
  • पोथी : पाबूप्रकास-महाकाव्य ,
  • सिरजक : मोडजी आशिया ,
  • संपादक : शंकर सिंह आशिया ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी ग्रंथागार, जोधपुर ,
  • संस्करण : प्रथम