अमराणे री आँख्याँ बिछगी,

परणीजण नै पाबू आया।

राठोड़ पावणा सोढाँ रा,

पलकाँ प्यारा, मनड़ाँ भाया॥

फेराँ बैठा कमधज सोहै,

बेदाँ रा मंत्र गाज रया।

सोढ्यां रा मधरा कंठ खुल्या,

मंगळ रा बाजा बाज रया॥

घूँघट में कनख्याँ स्यूँ निरखै,

हिंवड़ै नै पिव प्यारा लाग्या।

कँवरी चँवरी में हुलस रयी,

कितरा सोया सुपना जाग्या॥

जद तीजै फेरै नै उठिया,

केसर डोढ्याँ पर हिरणायी।

मंगळ में मोटो बिघन पड्यो,

कळझळ करती ‘देवळ’ आयी॥

बोली कमधज थानै बरज्या,

म्हारी घोड़ी मत लेज्यावो।

थे अब सोढाँ रै रिझ्या हो,

जायल रै जींद कर्‌यो धावो॥

बो म्हारी गायाँ ले भाग्यो,

सागै खीच्याँ रो दळ लायो।

दुरगत तो होगी ‘देवळ’ री,

पण भूँडापो थानै आयो॥

जावन्तड़ो कहग्यो जींद राव,

जे गायाँ पाछी लेणी है।

जायल रै गढ में ज्यायी,

केसर जे म्हाँने देणी है॥

घोड़ी रहवै राठोड़ाँ रै,

गायाँ खीच्याँ रै जावैली।

कह दीजै थारै कमधज नै,

माथाँ रै साटै आवैली॥

तूँ चारण म्हान नटगी ही,

म्हे घोड़ी लेवण जद आया।

खीची कुँकर खारा लाग्या

राठोड़ तनै अहड़ा भाया॥

हूँ केसर काळी नयीं देती,

कमधज थे मैंस्यूँ कोल किया।

घोड़ी देताँ ओहड़ी आवै,

पाबू अड़सी अै बचन दिया॥

जद मैं थानै घोड़ी दीनी,

पण कोनी बात हुई आछी।

थे भूप अबै फेरा खावो,

केसर म्हाँनै देद्‌यो पाछी॥

पाबू री भ्रकूटी बळ खायो,

फेरै रै अधबिच पग जमग्या।

सोढाँ वाळा हिंवड़ा हाल्या,

मंगळ गाजा बाजा थमग्या॥

कमधज बोल्यो देवळ देवी,

तूँ जको संदेसो लायी है।

खीच्याँ री खुली चुनोती आ,

राठोड़ाँ सामी आयी है॥

माता, बात घणी माड़ी,

घोड़ी नै पाछी लेवण री।

गायाँ घोड़ाँ री बात किसी,

अै बाताँ माथा देवण री॥

म्हाँ बैठाँ सोच नयीं देवळ,

गायाँ नयीं घेरी थारी है।

जायल रा धणियाँ जुलम कियो,

कोलूमढ नै ललकारी है।

थे मनड़ै नैं काठो राखो,

म्हे बचना नै नयीं हाराँला।

खिच्याँ रै बळ स्यूँ दबाँ नयीं,

के मरज्यावाँ के माराँला॥

जद गँठजोड़ै री गाँठ थाम,

खोलण नै लाग्या पाबूजी।

अमराणो सारो धूज उठ्यो,

फूलमदे री काया धूजी॥

सुरजमल सोढै कयो राव,

थे म्हाँस्यूं मती करो अहड़ी।

अध ब्याही कन्या छोडोला,

होसी बात घणी भैड़ी॥

सोढाँ रै लँछण लागैलो,

सुगना वाळी सुभ बेळाँ में।

जे बिघन पड़ैलो आज राज,

अमराणै री रँग रेळा में॥

गँठजोड़ै वाळी गाँठ खोल,

छोड्याँ चँवरी री जागाँ नै।

दुनियाँ भूँड घणी देसी,

म्हाँरी कन्याँ रै भागाँ नै॥

हतलेवो छूटै अधबिच में,

करम बडो है अणहुँतो।

सोढाँ री कँवरी स्यूँ बत्ती,

गायाँ री कीमत मत कूँतो॥

थे कंमध बिराजो फेरां में,

देवळ म्हे आप मना लेस्यां।

खीची जितरी गायाँ लेग्यो,

उण स्यूँ दूणी गिणवा देस्याँ॥

धीरज स्यूँ बात निमड़ ज्यासी,

जे अण हूँती ही होयी है।

बो जींद राव दूजो कोनी,

कमधज थांरो बैनोयी है॥

राठोड़ कयो सोढाँ राणा,

है बचन सिराँ पर थांरोड़ा।

पण कुंकर बिसरां देवळ नै,

है कौल दियोड़ा म्हांरोड़ा॥

खीची बात करी माड़ी,

रजपूत सवै कुँकर कोयी।

सोये पाबू रै मगरां में,

भालो मार्‌यो है बैनोयी॥

राठोड़ां नै ठोकर मारी,

लेग्यो है गायाँ चरती नै।

राणाजी लाज घणी इतरी,

म्हाँरी धोराँ री धरती नै॥

अब फेराँ में जे बैठांला,

टाळाँला हूँणी आयी नै।

लाँछण लागैलो पीढ्याँ रै,

खाँडै री खरी कामायी नै॥

जे जींद राव सुको जावै,

देवळ री गायाँ जावैली।

राठोड़ भुलग्या रजपूती,

भूंड पाधरी आवैली।

गायां साटै, थे गायाँ, द्‌यो,

म्हे कियाँ बैठस्याँ भायाँ में?

कायर बाजाँला राणा जी,

रजपूताण्याँ रै जायाँ में॥

कायर बाजण री भूँड जकी,

मरणे स्यूँ बत्ती भारी है।

रजपूती कियाँ डबो देवां,

म्हाँनै प्राणा प्यारी है॥

कह पाबू छोड्यो गँठजोड़ो,

हतलेवै री मैंदी गेरी॥

फाँकां सी आख्याँ छळक रयी,

फूलां सिरसी फूलमदे री॥

अध ब्याही छोड़ी पिव चाल्यो,

रजपूती रै हेलै ऊपर।

बोल्याँ बिन रयो नयीं जावै

अब लाज कियाँ सरसी कुँकर॥

सिसक्याँ भरती सोढी बोली,

म्हाँरो हिंवड़ो होल्याँ लेवै।

भरतार भंवर री नाव हुयी,

खेवटियो छोडै, कुँण खेवै॥

घड़ी घणी है अपरोगी,

फेराँ में जुद्ध नगारा है।

जाग्यो पाप किसो धणियाँ,

अै भाग इसा क्यूं म्हारा है॥

मुखड़ो यी पूरो नयीं निरख्यो,

फेरो हो पूठ पधारो हो।

हूँ कियाँ जमारो राखूँली,

चँवरी में छोड़ सिधारो हो॥

घणी बडी है बात नाथ,

फेरा तो पूरा कर ज्याता।

रोळी री चुटकी स्यूँ कमधज,

थे माँग म्हाँरली भर ज्याता॥

बचना रो सोच इसो कांई,

खीची नै पकड़ मंगा देस्याँ।

सोढाँ री सैना चढ ज्यासी,

जायल रो गढ़ तुड़वा देस्याँ॥

राठोड़ कयो म्हाँरी राणी,

नयीं हुवै, नयीं होवण री।

हीणी बात घणी लागै,

सासरिये सामै जोवण री॥

बो जींदराव म्हांनै तेड़्या,

जद खीच्याँ स्यूँ राठोड़ अड़ै।

राठोड़ाँ ऊपर कड़की है,

सोढाँ रै सिर पर कियां पड़ै॥

जे म्हांरै बदलै जूझण नै,

सोढाँ री सेना जावैली।

राठोड़ कमर पर बाँधे आ,

तरवार काम कद आवैली॥

थे हँसता सीखाँ द्‌यो म्हांनै,

ज्यूँ देती आई छतराण्याँ।

रोती नयीं सोवै रण चढताँ,

रजपूतां रै घर री राण्याँ॥

कुँकर जीणो कुँकर मरणो,

थाँ स्यूँ तो कोनी छानो।

सतियाँ में जोहर जागै है,

जग जाणै केसरिया बानो॥

सोढाँ रो बंस ऊजळो है,

सूरापै रा अधिकारी हो।

आँख्याँ रा आँसू अखरै है,

बीराँ रै घर री नारी हो॥

सोढीजी आँसू पूँछ लिया,

बोली भरतार पधारो थे।

खीच्याँ रो खाँडो तोलण नै,

रण आँगण जा ललकारो थे॥

पण जलम मरण रा साथी हो,

कुँण जाणै पाछा कद आवो।

हूँ खड़ी अडिकूँली थानै,

कोयी सहनाणी दे ज्यावो॥

पाबू बोल्या सोढ़ी म्हाँरी,

थाँ में तो प्राण म्हाँरला है।

काया टूट्याँ छूटैं कोनी,

जलमाँ रा साथ लारला है॥

थाँरै मनड़ै रो सुवटियो,

म्हांरोड़ो सुख दुख कह देसी।

सैनाणी दुख में मुरझै,

सुख में सोरी साँसाँ लेसी॥

जे जीवन्तड़ा पाछा आवाँ,

थाँनै हिंवड़ै पर राखाँला।

कोई संदेसो ज्यासी,

जे रण में काया नाखाँला॥

इतरो कह चढग्या पाबूजी,

केसर पवना ज्यूँ उड चाली।

राठोड़ाँ रा घोड़ा दोड़्या

जद पोड़ाँ स्यूँ धरती हाली॥

खीच्याँ रो मारग जा रोक्यो,

बै तरवाराँ पळकण लागी।

रजवट नै रजवट काटै ही,

रगताँ वाळी तिसणा जागी॥

सिसकी धरती धोराँ वाळी,

उण दिन तो रजपूती रोयी।

जद साळै रै गळ पर भूंतो,

भालो भळकायो बैनोयी॥

‘पाबू’ ‘हड़बू’ सा बीर कट्या,

‘चाँदै’ ‘डैमै’ सा बळ वाळा।

राठोड़ कट्या खीची कटिया,

भूमाँ पर बिछग्या भूरजाळा॥

कागाँ रो गीधाँ रो टोळो,

लोथाँ पर रोळ मचावै हो।

पूग्यो गोगो चोवाण बठै,

आँख्याँ छळकी पछतावै हो॥

रजपूताँ थांनै निमसकार,

पग-पग पर माथा बिखराग्या।

पण इतो अणेसो आवै है

भाई नै भाई ही खाग्या॥

स्रोत
  • पोथी : जागती जोताँ ,
  • सिरजक : गिरधारीसिंह पड़िहार ,
  • प्रकाशक : पड़िहार प्रकाशन बीकानेर