जिण स्हैर में हूं

वो भोत बड़ो है

कटोरी आगै

हटड़ी जित्तो ठांव

लूण-मिरच मसाला दांई

भांत-भांत रा है अठै लोग

स्हैर आछो है

पण म्हारो गांव नीं है।

लांबी-लांबी सड़कां है

चौक-चौराया है

पण गळी-गुवाड़ कोनी

हेत-प्रीत रो कोनी अठै वासो

आदमी फिरै निसांसो

कोई ठौड़ इसी कोनी

जठै कोई राड़ कोनी

म्हारो गांव नीं है।

ऊंची-ऊंची हेली है

अेक-अेक हेली पण पहेली है

हेली आगै कोनी पगडांडी

सूनी है सड़कां

कोई खाळा नीं

नीं है कोई छांव

पण ऊंचा ओळखीजै दांव

म्हारो गांव नीं है।

गांव में

अजै खेल है

लूण-लकड़ी-तेल

कुरां डंडो-लूणियां घाटी

कंचा-गोळी, कळी-जोटा

अंटपिल्ला-खड़ी घुच्ची

नक्का पूर

राड़ सूं दूर

स्हैर में

खेलण नैं खेल भोत है-

क्रिकेट है

वीडियो गेम्स है

पज्जल्स है

पण लोग खेलै

आपा-धापी रा खेल

मिनखपणै माथै

पईसो भारी

ठाह नीं कद किण माथै

म्हारो गांव नीं है।

म्हारो गांव तो

मिनखपणे रो नांव है।

अेक-अेक ठौड़ रो नांव

याद करां तो चेतै आवै मिनख

म्हादै वाळी गळी, काळियै वाळी डिग्गी

देवलै रो गाडो, छोगै रो गोधो

रुकमा री सांढ, प्रभु रो खेत

च्यारूंमेर हेत हेत

म्हारै गांव में

बाजरी री रोटी

गुवारफळी-काचरी

खेलरा-फोफळियां रो साग

गुळ-रोटी रो चूरमो

दूध-छा-राबड़ी

स्हैर में पण

ग्रासी ग्राउंड है

पिज्जा-बरगर, जंक फूड

चाऊमिन-इडली डोसो

कचोरी-समोसो तो है

पण कोनी भरोसो

म्हारो गांव नीं है।

स्रोत
  • पोथी : मंडाण ,
  • सिरजक : मनोज पुरोहित 'अनंत' ,
  • संपादक : नीरज दइया ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी ,
  • संस्करण : Prtham