फिरतो-घिरतो

फागण आयो है

नूंवी कूंपळां साथै

नूंवो उजास,

नूंवो विस्वास,

नूंवी आस,

नूंवी उमंग लायो है!

हरदम हरखावण रो हेत

बिरछ-जूण री कीरत

पग-पग मुळकती

हवा रै हींडै मांय

नित-नित बायरै सूं

हिल-जुल बांथेड़ा करती

सूरज री सगती सूं

लुळती-डुळती बधै

छेवट खिलनै...

मुळकतै फूलां सूं

सौरमड़ी बांटै दराजै-दराजै

समै री सौरम

कुदरत री बदळती-बिगड़ती

सांसां मांय रम जावै...

इण बिगड़ती हालात सूं

स्याणां नै ठाह पड़ै कै

प्रदूसण रो रोग लागग्यो

उगती उमर माथै

चट्टान आय'र पड़ग्यो

अबै पूरो रूंखड़ो कुमळावै

देस रा धणियां!

थारै थकां

काची कूंपळां माथै

काचो काज किंयां?

भला भाया ! अबै लग तो

म्हारौ खिलतो हो संसार

अर अबै तो

म्रिगतिसणा दांई भंवतो रेवैला

कितरा दिन फळैला-फूलैला?

स्रोत
  • पोथी : कवि रै हाथां चुनियोड़ी ,
  • सिरजक : संग्राम सिंह सोढ़ा