सतपुरसां कैयी—

अणमांग्या मोती मिळै

अर मांगी मिळै भीख

उल्टी निवाज गळै पड़ी

जद-गेलै बैवतां

बछेरै री मनस्या करी

तो मिल्यौ तो सरी

पण—चढ़ावण री जगां

खुद चढ लियौ।

स्रोत
  • पोथी : मोती-मणिया ,
  • सिरजक : रूपसिंह राठौड़ ,
  • संपादक : कृष्ण बिहारी सहल ,
  • प्रकाशक : चिन्मय प्रकाशन