सतपुरसां कैयी—
अणमांग्या मोती मिळै
अर मांगी मिळै न भीख
उल्टी निवाज गळै पड़ी
जद-गेलै बैवतां
बछेरै री मनस्या करी
तो मिल्यौ तो सरी
पण—चढ़ावण री जगां
खुद चढ लियौ।