गीतां नै

बिकवाणो चाहो

बिकवा द्यो,

पण भावां नै नी बेचूं।

काया नै

बिकवाणो चाहो

बिकवा द्यो,

पण प्राणां नै नी बेचूं।

हिवड़ो तो द्रढ़ आसा नै अर्पत है;

जीवण तो बिस्वासां नै अर्पत है;

मूरत नै

बिकवाणो चाहो

बिकवा द्यो,

पण निष्ठा नै नी बेचूँ॥

स्रोत
  • पोथी : मोती-मणिया ,
  • सिरजक : भँवरसिंह सहवाल ,
  • संपादक : कृष्ण बिहारी सहल ,
  • प्रकाशक : चिन्मय प्रकाशन