डांगर नीरिजता व्हैला

दिन मांय दो बारी

पण मिनखां नै निरणा पड़ सकै है अणगिणत बार

मुआवजै री तूड़ी मांय

धरम रो बांटो मिलाय'र

राखणो पड़ै है बट्ठल

ठाण रै अेन बिचाळै

हर्यै मांय देय सको हो कीं नफरत

काट'र रंग किणी रंग खातर

मिनख खावैला लपर-लपर

अर जे कोई नीं खावै चाटो-बांटो

तो पछै वीं नै काटण वाळां नै देवण रो रास्तो बचै है

लारला नैं खराब बी नीं करैलो अर दो रीपिया बांट लेस्यां।

स्रोत
  • सिरजक : अनिल अबूझ ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी