देख्यो आज अरावळी

ऊबो नंग धडंग,

लाजां मरग्यो मैं, कयो

के थारो ढंग?

इयां बुढापै में किंयां

साव निसरग्यो राम?

जाबक सित्या नाख दीं

भलो लजायो नाम,

बै रूंखा रा पानड़ा

मुखमल सा परिधान,

तू उतार फेंक्या कठै

किण नै दीन्या दान?

फुलड़ां रा गैणां कठै

किंयां अडोळा अंग?

कठै फळां रा झूमका

फीको थारो रंग?

सुण आडावळ यूं कयो

सुण, पंथीड़ा बात,

माया रा लोभी करी

म्हारै पर अपघात,

काट्या हरिया रूंखड़ा

तोड़्या सै फळ फूल,

चोरां रै धक्कै चढ़्यो

पड़ी माजनै धूळ।

म्हारै अंतस में धरै

रोजीना बारूद,

लूंटा कोसो कर करयो

हांडी हेट समूद,

पाळता म्हारै आसरै

घणा जिनावर जीव,

मांस खाल रै वासतै

मार्या मिनख कुजीव,

सिर राख्यो मेवाड़ रो

जका भील सिर दे’र

बांरा रुळग्या टापरा

माची जबर अंधेर,

कूकूं किण रै सामनै

पड़ी कुवै में भांग,

भैंस-धणी बो, हाथ में

हुवै जकै रै डांग।

स्रोत
  • पोथी : कन्हैयालाल सेठिया समग्र ,
  • सिरजक : कन्हैया लाल सेठिया ,
  • संस्करण : प्रथम