जमानो करै नकल

कोनी आं लोगां में अकल

कांई आछो-बुरो है आज,

नीं कर सकै वीं में पैचाण

आज भूलग्या है सगळा,

पुराणी बातां अर विचार

खावै-पीवै फोकट रो पण

नीं जाणै खरी कमाई रो सवाद।

साची बात कानां मांय

घणी चुभै अर खटकै

करै दूजा पे घणी रीस,

पण खुद रो नुकसाण होवै।

दूर देसां री फिल्मां,

देखै सगळा बैठनै रोजाना

अर अणहोवणी बातां करै,

ज्यो आंकां मनड़ा में भावै।

खाणो-पीणो भूलग्या,

ज्यो अेक लारै बैठन खाता हा,

अबै कठै है वो खाणो?

जीमै अठै बफर-डिनर ऊभा-ऊभा।

सूती कपड़ा बेचदै दूजा नैं,

खुद पैरै जींस-टीशर्ट भारी-भारी

लागै घणा भद्दा पण फैसन है,

नीं जाणै वै बातां ग्यान री।

खुद नैं भूल दूजां री करै नकल

जाणै कोई रेवड़ है,

ज्यो अेक लारै अेक पड़ै कूड़ा में।

गुलामी दूजां री करै, खावै-पीवै आपणो।

आगै कुण जाणै आं रो कांई होवैलो?

रामजी थे बचावो, आज म्हारा देस नैं

म्हनैं डर लागै कै

पाछो देस दूजा रो नीं हो जावै।

स्रोत
  • पोथी : मंडाण ,
  • सिरजक : रतन लाल जाट ,
  • संपादक : नीरज दइया ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण