निजरां सूं कीं कैवणो

मूंडै सूं कीं

कैवण सूं बत्तो हुवै

असरदार

म्हैं सीखग्यो।

म्हैं जाणग्यो

कै रात रै अंधारै मांय

न्हायोड़ी धरती

जे चंदरमा सूं मांग लेवै

मुट्ठी भर उजियाळो

तो चंदरमा

मुंडो फेर’र खिसक जावै

अर घणी बार

वो चंदरमा

दिन थकै आय धमकै

धरती री छाती माथै

अणमावतो

उजियाळो लेय’र।

स्रोत
  • पोथी : मंडाण ,
  • सिरजक : संजय आचार्य ‘वरुण’ ,
  • संपादक : नीरज दइया ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण