गांव री

मुसाण-भौम रै

थरणां कांपता

झाड़-झखांड सूं

अट्योड़ी इण भौम में

गादड़ा बोलता

अर कदे-कदे

रात नै

जद बोलती

फोही गादड़ी

तो खरणाटौ

पाटतौ

अर जद-कद देखता

लकड़ां में बळतौ आदमी

तौ सैकारौ निकळतौ

धूजणी छूटती

क्यूंकै

मुसाण हा

अर मुसाणां रौ फुटरापौ हो

जकौ संवेदना नै राखतो जींवती

अर डर री

मीठी-मीठी झुरझुरी नै राखतौ हामकाम

जकी बिना खांडौ है

माणस रौ हियौ

पण आज

लकड़ां में बळतै

माणस रै पसवाड़ै

विलायती दरखतां री छियां

लोग पत्ता खेलै,

हांसी-ठ्‌ठा करै

सा‘रै

एक कानी

टाबर दड़ रमै

जगतै आदमी रै

कन्नें सूं

दड़ी चक-चक ल्यावै

चिता में बोलते पटाकां पर

ताळी पीट-पीट हांसै

एक कानी

बडै हॉल में

सत्संग चालै

महात्मा जी रा

उपदेस गूंजै,

इकतारै पर

कबीर अर मीरा

गांव रा मुसाण मरग्या

अर बीं री जगां

जामग्यौ पार्क।

स्रोत
  • पोथी : आ बैठ बात करां ,
  • सिरजक : रामस्वरूप किसान