दिन दूणी-रात चौगुणी

बधती मूंगारत

अर घटतो हेत,

मन नैं घणो दुखावै है।

चौमासा रो पाणी

गळा सूं ऊंचो निकळ'र

आंख्या में घुसबा को

जतन कर रैयो है।

गरीब तो

गरीब रैयग्या

अमीर भळे अमीर होयग्या।

तनखा खूट जावै घड़ी'क में

सरीर में पेट लार बैवण रो कसूर

आदमी रो तो नीं है।

बधती मूंगारत

घटतो हेत

मिनख-जमारो

जीव घणो दुखावै है।

स्रोत
  • पोथी : मंडाण ,
  • सिरजक : कुंजन आचार्य ,
  • संपादक : नीरज दइया ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी ,
  • संस्करण : Prtham