एक दन

अस्यां बैठ्या बैठ्या

म्हनै उडबा की सोची

अर आपणा पाँखडां उघाड्या

म्हारा उडबा की सोचबो

अर पाँखडां उघाडबा कै बीच को अंतराळ छो

म्हारो जीवन

बाकी को करम

बायरा की गति छी

अर आकास को विस्तार

म्हारो उड़बो

म्हारा बस मं कोनै छो

तो म्हनै पाँखडां हलाबो बंद कर द्या

अर हेरबा लाग्यो

असीम आकास का आखिरी छोर नै

म्हारी दिसा आड़ी छी

अर साठ डिग्री को कोण छो

जमीन की खेचमताण

अर बायरा की धकेळ

म्हारी गति कै ताई साध री छी

दोनी की चपेट मं आयो

म्हारो यो डीळ

आकास आड़ी आस लगार्यो छो

अर एक निश्चित बिंदु पै आता

आकास नै म्हारै ताई खाँचल्यो

अब म्हूं मुगत छूं

घडी घडी

उड़बा की सोचबा सूं

अर घडी घडी

पाँखडां उघाडबा सूं।

स्रोत
  • सिरजक : किशन ‘प्रणय’ ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
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