वौ सांचौ मानवी, वौ सांचौ मर्‌द।

पर पीड़ा नै बांटलै, हँस नै झेलै दर्‌द॥

सेंध लगावै रात में, दिन रा पैरादार।

बैं घर नै कुण सांभले, मुखिया बंटाधार॥

हंसा नै बासौ नहीं, करै कागला सौर।

के होसी बैं देस रौ, बण्या रूखाळा चोर॥

बोली बोलै ओपरी, पैर बिराणूं भेस।

कदै ऊंचौ हो सकै, वां मिनखां रौ देस॥

करतब सूं मूं मोड़ कर, मांगै जो अधिकार।

वां मिनखां रै देस रौ, कदै व्है उद्धार॥

चोळौ धार्‌यां सूं कदै, बणै कागा हंस।

दूध परोसौ नाग नै, पण मारैगौ दंस॥

हाकिम हुवै बावळौ, चाकर नीं हुंसियार।

जोबन कदै सूगलौ, जरठां रद सिणगार॥

सांच कहौ झूठी कहौ, न्याव-नाड़ नै मोस।

तुलसी बाबौ कै गयौ, ठाडै को नीं दोस॥

स्रोत
  • पोथी : मोती-मणिया ,
  • सिरजक : महावीर जोसी ,
  • संपादक : कृष्ण बिहारी सहल ,
  • प्रकाशक : चिन्मय प्रकाशन