उळझ्योड़ी कूकड़ी

जिसा मिनखां रै मनड़ां मांय झांक’र

म्हैं कियां समझूं वांरा भाव,

वणा रो चाव-ठाव?

बारै दीखै

रूड़ा-रूपाळा, छैल-छबीला

धोळा बुगला-सा फिरै च्यारूंमेर

अर चरै गांव-स्हैर

म्हैं भोळो-भाळो,

चावती-अणचावती

कोसिसां करतो थको

देखूं कै—

आवैला कदी अस्यो दन बी

जद समझूंला

टेढा लोगां री सीधी बातां।

स्रोत
  • पोथी : मंडाण ,
  • सिरजक : सत्यनारायण ‘सत्य’ ,
  • संपादक : नीरज दइया ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण
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