मिनख री अकल माथै
मसांग री राख हंसै
अे गै’ला मांनखा!
औ ऊंच-नीच रो फरक
अे छोटा-मोटा रा भेद।
थांरी दुनिया मांय चालें,
थें इज बणाया हो,
म्हारै अठै
सगळा अेक इज लकड़्या बळै
अेक इज मारग चलै
सारा ई आखिर मांय
अेक तरै रा इज़ ढिगलाव्है!
मिनख री अकल माथै
गळी रौ गिंडक हंसै
अे मूरख मांनखा!
थें जिणरौ खावौ
उणरौ इज फोड़ौ,
लूण-हरांम करौ,
ठगी, धोखौ, बेइमानी
थाँरी दुनिया रा गैणा है,
म्हैं
जिणरौ खावां
उणनै उमर भर नीं भूलां
अवाब सूं ई ओळखां।
म्हैं सोच रह्यौ हूं
माँनखा सूं कितरौ ऊंचौ है
मसाण रौ ढिगलौ,
गळी रौ गिंडक।