जिबान ना
परण्डा उपर
बे गोरा
पडिया थका हैं
एक में झेर है
बीजा में अमृत
झेर खुद पीयो
अमृत बीजा ने पावो
शिव मींरा ने सुकरात नी
लाईन में आवो।
स्रोत
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पोथी : वागड़ अंचल री राजस्थानी कवितावां
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सिरजक : भागवत कुन्दन
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संपादक : ज्योतिपुंज
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प्रकाशक : राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृति अकादनी बीकानेर
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- संस्करण : प्रथम संस्करण