रात रै
अंधारै माय
जद सूय जावै
हिन्दू अर मुसलमान
मिंदर अर मसजिद
करै
आपसरी मांय
मन री बातां
पूछै
एक- दूजै रा हाल
घूमै हाथां मांय
हाथ घाल
रमै
खो-खो, कबड्डी
लंगड़ी टांग
कै सतोळियो
करै धोळधप्पा
धूड़ सूं भरै
नदी मांय न्हावै
अर खिलखिलावै
पण ऊगतां ई दिन
जागतां ई भगतां
अर दीन-धरमआळां रै
मसजिद सूय जावै
मूंढो ढांप'र
ठाकुर जी लगाय लेवै
मूंढै माथै ताळो
दोनूं
डरै है स्यात
हिन्दू अर मुसलमानां सूं
भगतां अर
दीन-धरम आळां सूं॥