बैठग्यो कलजुग पांव पसार।
मिनखड़ा इब तो सोच विचार॥
गधेड़ो खेतां बीच चरै—गावड़ी खूंटै भूख मरै।
कोयलड़ी सुरीली तान करै—ना वीं पै कोई ध्यान धरै॥
काग पै बजैं पट्या पट ताळी—कि गुमसुम बैठी कोयल काळी।
कागळां जग्य-जग्य कर्यो लंगार।
मिनखड़ा इब तो सोच-विचार॥
झूंठ बोलै हैं मणा-मणा—कि झूंठा हांड वण्या ठण्या।
झूंठ का लम्बा लम्बा हाथ—पसरगी डाळी डाळी पात॥
पगल्यां पगल्यां गई समाय—साच को काम रत्ती भी नाय।
साच पै पड़ै दड़ादड़ मार।
मिनखड़ा इब तो सोच विचार॥
झूंठ कररी है तांडिव नाच—जठै मिलै रत्ती ना साच।
के तसील पंचात जेल’—झूंठ की भरल्यो गाडी रेल॥
रिह्या भोळी जनता नै चूस—दोनु हाथा हूं लेवे घूंस।
घूंस को होरयो गर्म बजार।
मिनखड़ा...
बाबूड़ा नहा धोय उजळा होय—कि चाल्या जाणै सासरे कोय।
टांग के अन्तर की फोई—क जाणैं ‘एक्टर’ है कोई॥
जावैं बैठ दफ्तरां मांय—काम कै हाथ लगावैं नांय।
कि जाणौ घर की है सिरकार।
मिनखड़ा...॥॥
पान जरदे को मुंडे मांय—कि लम्बा लम्बा बाळ बढ़ाय।
कोई जै जावै काम री चात—घूस बिना करै नी बात॥
अयां सै धोळै दोफारां—कि देखो कियां गजब ढार्या।
गजब होर्या धोळै दोफार।
मिनखड़ा...
देश में बढ़र्यो आतंकवाद—देश दिखै हो तो बरबाद।
हिंसाबादी बणर्या भोत—अहिंसक मरैं कुता की मौत॥
नकटा, नागा नमक हराम—गैबता, गुंडा, गिंडक गुलाम।
अणां को क'द होसी सुधार।
मिनखड़ा...
चूस भोळी जनता रो रगत—कहावैं साचा देश भगत।
पड़्यो करनी कथनी में फेर—पलटता कोन्या लागै देर॥
अयां का अगवा हो गया आज—जणां कै शर्म रही न लाज।
बणैं सै गांधी, नेहरू खान गफार।
मिनखड़ा इब तो सोच विचार॥