हां सांच कै सके’क

होग्या म्हाका’ में

घणा जती, सती अर सीध

पण कुण देख्यां

व्हेला कोरा पौथ्यां रा आखर

क’कवि री कल्पना

नीतर क्यूं उचकै म्हारे च्यारूं मेर

अन्धारां रा घूक अर गीध

एक बार नीं

सेंग बार म्हनें लागे

कै तो व्हे नीं

कै म्हें नीं

क्यूं कै अे जिनावर तो

खावै फुदकै रात में

पण म्हें तो अबै

दिन रा उजाळा में खाल खींचा

तो अन्धारां में कद् आंख मींचा

कांई फरक म्हां मिनखां अर नाग में

बांटर्‌या दोइ

ज्ञानी गळियां में

एक साथै

एक दूजां रे वास्ते विष।

स्रोत
  • पोथी : जागती जोत मार्च 1981 ,
  • सिरजक : नन्दकिशोर चतुर्वेदी ,
  • संपादक : महावीर प्रसाद शर्मा ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी, बीकानेर
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