पीड़ रौ पंथ पुराणो जांण

अकल री आंख्यां सूं पहचांण।

करम रा कागद कर आगै

मनख नै मात नहीं लागै॥

घटा जो ऊमड़सी घणगोर,

पपीयो गासी, नाचसी मोर।

बीजळी देसी पलका झाल,

हवा सूं खिरसी पत्ता डाळ॥

बिरखा बैरण बण गाजै,

मिनख नै मात नहीं लागै।

करम रा कूड़ा करदै लेख

मेट दै दुखदायण वा रेख।

जुगत में जीवण रौ धमसांण,

लड्यां सूं रैसी साजा प्राण॥

मौत खुद ऊंधी पड़ भागै,

मिनख नै मात नहीं लागै।

पीड़ नै आंसूड़ा मत सींच

कसां मत काळजियै री भींच

मिनख रै मोत्यां नै बुचकार,

बिलखता मनड़ा नै मत मार॥

दरद कद रोया सूं भागै,

मिनख नै मात नहीं लागै।

खार सूं कद सुळझै है सूत,

दूध बिन कदै पळै है पूत।

मिनख में भूलां री भरमार,

मिनख नै मिनखपणै सूं प्यार॥

पावंडा नै मात नहीं लागै।

करम रा कागद मत टंटोळ,

गजब री पींडै मिळसी पोळ।

भरम रा भाखर भांग निढाळ,

सुखी जीवण रा सुपना पाळ।

अन्धारौ जोत जग्यां नाठै,

मिनख नै मात नहीं लागै।

कीड़ी पड़ जावै सौ बार,

लगन री कद छोडै है लार।

ठोकरां सूं कद फूटै नैण,

विपत रा कुण साथी कुण सैण।

पीड़ रौ पंथ अथग आगै,

मिनख नै मात नहीं लागै।

जीवण हार जोत री जोड़,

भाग में कुड़ी काढौ खोड़।

पड़ौ पण पाछा चेतौ भीर,

पिछड़ियां पग बंधसी जंजीर।

जुगत सूं दो पग द्यौ आगै,

मिनख नै मात नहीं लागै।

स्रोत
  • पोथी : हंस करै निगराणी ,
  • सिरजक : सत्येन जोशी ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी