म्हारै मुळकतै मन

उमड़ियौ गाढौ हेत

लाग्यौ समंदर री छोळां में

म्हूं बह आयी

अर मंडग्यौ चंदरमा रौ रास

तद अंतस सूं उमड़ियौ सुरीलौ संगीत

होटां आयौ

—म्हैं महताऊ अंगां सूं मिळ’र सरमाई

अर म्हारी हरियाळी रा निरख्या-निरख्या

सुपना चांदणी सूं उळझ्या

तन रै डाळै-डैळै सूं मिळ’र

वै आपौ-आप आपरै रगत नै

गरमावता थकां

चूनड़ पल्लै भैळा हुयग्या।

स्रोत
  • पोथी : अंवेर ,
  • सिरजक : मीठेस निरमोही ,
  • संपादक : पारस अरोड़ा ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी, बीकानेर ,
  • संस्करण : पहला संस्करण