म्हारे सूं जलमी है

केई कवितावां।

म्हें वांनै सजाई-संवारी

परणाय दी

कोरा कागदियां सू

कीं हाल बैठी है कंवारी

लुक्योड़ी मन री कोटड़ियां में

ढक्योड़ी

भावना री, मानना री

झीणी ओढणियां सूं।

थै

म्हारे सूं इणां ने नीं

इणां सूं म्हनै ओळखोला

म्हारा दीठ-अदीठ रूप नै

इणां में ठौड़ ठौड़ खोजोला।

म्हारी आस रो नाको

म्हारी सांस रो घेरौ

नाकै- नाकै सबद जलमग्या,

अणगिण आखर रा घेरा में

घिरगी धरती।

आंख्यां में चितराम पसख्या

कांनां सुणी भलै नीं सांची

आंख्यां अटकी तस्वीरों झूठी नीं व्हैला

सूखै हांचळ होठ सूखग्या

स्रवण थाकग्यौ

कावड़ में परवार घींसतां

केई द्रोपदयां

चीरहीण व्हैगी पल भर में

अरजुन छोड दियो रण-आंगण

धरती गिटगी वीज अर

करसौ भूखां मरग्यौ

मिनख

मिनख री आंख

आपरौ रूप देख डरग्यौ।

हाल केई तस्वीरों बाकी

सबद-माळ रा केई मिणिया गिणणा बाकी।

थै म्हें दोनू जीवां हां

जीवै है अणगिणती सवाल

केयां रा उत्तर देय दिया

केयां रा उत्तर देवूंला

थै म्हनै मती देखौ

देखो कवितावां नै

कविता ढळिया चितरामां ने

चितराम चढयोड़ा रंगां ने

रंग रंग सूं मिळयो

रंग अेक नुवौ निकऴग्यो

सबद सबद सूं जुड़यो

अरथ अेक नुवौं थरपग्यौं।

स्रोत
  • पोथी : झळ ,
  • सिरजक : पारस अरोड़ा ,
  • प्रकाशक : जुगत प्रकासण, जोधपुर ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण
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