म्हारी कविता
मारग ढूंढ रैयी है उण रौं
कठै है वौ
जिण खनै गिरवी राख्योड़ी है
ईमान री पोटळी
म्हारी कविता
जूझ रैयी है उण सूं
जकौ वौपारी है
मिनख रै रगत रौ
बगत रौ
म्हारी कविता
रोक रैयी है वै पगल्या
जका ‘जनून’ सूं भरयोड़ा हैं
घिसर रैयी है
रतौंदी रै मांदां नै
म्हारी कविता
कोरी पगडंडियां कोनीं
जठै जकौ आवै, गुजर जावै
अठे सूं वो ई गुजर सकै
जको धरती सूं जुड़योड़ौ है
म्हारी कविता
कुदरत रै न्याव
अर कूड़ा मानखां रै इन्याव
दोनां सूं
दो-दो हाथ करणी चावै है
म्हारी कविता आज
सूरज रौ चांदणी
अर रात रौ अधारौ
दोनां रै बीच
अंतस रौ उजास सोधै है।