थूं रोक नीं सकै

म्हनै वै गीत गातां

जिका म्हारी रगां में

रगत रै साथै फड़कै है।

थूं रोक नीं सकै

म्हनै वै गीत गुणगुणावता

जिका म्हारै

काळजै रै मांय धड़क है।

अंधारौ

जित्तौ घणौ गैरीजै

उत्ता घणा तड़फै

म्हारा नैण

उजास री अेक किरण सारू

गोटीजै

तर-तर जित्तौ घणौ धुंवौ

घुटीजतौ जीव

तड़फती तागत सागै

तोड़ैला सगळा दरवाजा।

अबै तौ पसरै है

सगळै आभै में

म्हारै मन रै गीतां री

अै मुदरी कड़ियां

पीड़ सूं फड़फड़ावतै

पसवाड़ा फेरतै

बगत रा कान ऊभा व्है,

मांवौमांय

डुसक्यां भरती

रात चुप व्हैगी है।

कसूमल-सो सुहावणौ

फूटतौ पसरै उजाळौ

पुरवाई रै साथौ-साथ

धीमे-धीमे झरती आवै

म्हारै इज मनड़ै रा वां

गीतां री राग।

कद तांई ढकैला

थूं सगळा दरवाजा

कद तांई बांधैला

हथाळी सूं किरणां?

मत उचटाव मीठी नींद

सुख रा सपना मत बिखेर

थूं मत बिखेर!

म्हैं खूण्यां लग जोड़ू हाथ

थूं सुतौ रै चुपचाप

मत सिळगा

ढिगली बारूद री

थारै में ताकत अणथाग

दरद

थूं मत जाग, रे मत जाग!

स्रोत
  • पोथी : अंवेर ,
  • सिरजक : बी. आर. प्रजापति ,
  • संपादक : पारस अरोड़ा ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी