रात्यूं जागता स्हैरां मांय

आखी रात

बावळो-सो घूमै अंधारो

जाग्यां सोधतो

घड़ी दोय घड़ी

लेवण नींद।

अठीनै देखो-

म्हारै गांव

जेठ रै आकरै तावड़ै मांय

छियां नैं लाधै ठौड़

खेजड़ली रै हेठै

बा तिरपत लेवै नींद।

स्रोत
  • पोथी : राजस्थली ,
  • सिरजक : किरण राजपुरोहित ‘नितिला’ ,
  • प्रकाशक : राष्ट्रभाषा हिन्दी प्रचार समिति श्रीडूंगरगढ