बो देवराज नै देवाँ नै,
धरती री धूड़ चटावणीयों।
लँका रो मेघो जूझै हो,
गरजन स्यूँ गगन कँपावणीयों॥
नहायोड़ो रगत पसीनै में,
बैर्याँ रो काळ घूमतो हो।
मदमात मोटै कुँजर ज्यूँ ,
रावण रो लाल झूमतो हो॥
बाँदर दळ रै युवराज, आज-,
-'अँगद' रो बळ ओछो पड़ग्यो,
दरबार भरै पग रोपणीयें,
समरथ रो सूरापो झड़ग्यो॥
'हड़मान' बजर काया वाळो,
पाड़ाँ नै पकड़ बगावणीयों।
अरड़ाय आज उळटो पड़ग्यो,
धक्कै स्यूँ घर धूजावणीयों॥
'सुगरीव' सरीसै सूराँ रो,
सूरापो काँप्यो, गस आयो।
अै धरा गगन भिळता दीस्या,
जद चोट पड़ी चक्कर खायो॥
बो बडो सूरवो जामवन्त,
कर ऊँची मूँछ अकड़तो हो।
मूँढ़ै में आग्या झाग आज,
धरती पर पड्यो धड़कतो हो॥
रामादळ वाळा सैनापत,
लोयाँ में न्हाया धूज रया।
'नळ नीळ' जिस्यां नै कुण बूझै,
जद मोटा बळी अमूँज रया॥
मुख करै जठीनै मुड़ ज्यावै,
उडज्यावै होस कपीसाँ रा।
जबरै रो हाथ हलै अेकर,
माथा गुडकै दस बीसां रा॥
अहड़ो जूझै हो 'मेघनाद'
बाँदर दळ रै फेफ्याँ आगी।
जद हा-हा कार हुयो हाको,
रघुवंस्याँ री सेना भागी॥
बीराँ तो पूठ परी दीनी,
सूराँ सूरापो बिसरायो।
रण आँगण त्राह-त्राह मचगी,
तप तेज भर्यो लिछमण आयो॥
बोल्यो मत कूद घणो मेघा,
ओ काळ थारलो आयो है।
तू आज नास जबरो कीनो,
अण तोल्यो जोर दिखायो है॥
अब रघुवँसी रो हाथ देख,
चालणदै तीखा तीराँ नै।
पण याद राखजै भूँड घणी,।
पाछो पग पड़ताँ वीराँ नै॥
रावण रो बँस मिट्यो जाणी,
जद हाथ म्हारला हालैला,
लँका सीता री सतियाँ री,
फिट्कार किता दिन झालैला॥
जीवण रो एक उपाय अबै,
जे तूँ चावै, लंका चावै।
समझादै बाप थारलै नै,
बो सरण राम री आज्यावै॥
ओ दंभ घणो दुख देवैलो,
जम नगरी नैड़ी आ ज्यासी।
रावण रा करम इसा काळा,
आखी लँका नै खा ज्यासी॥
लंकेस कुँवर बोल्यो-लिछमण,
क्यूं करम धरम नै छाणै है।
जुलमा री जड़ तैं रोपी है,
आ आखी दुनियाँ जाणै है॥
तूं आप पाप रो रूप खड्यो,
बीराँ नै कळंक लगायो है।
मिनखाँ स्यूँ अड्यो नहीं भोळा,
नार्या पर हात उठायो है॥
तूं जाणै लँका झुक ज्यासी!
दिलवाळा दरद नहीं देख्या।
इज्जत रो मोल नहीं कूँत्यों,
भुरजाळा मरद नयीं देख्या॥
तूं सुरपणखा री नाक काट
लंका री स्यान गमाई है।
जद सीता लाज अवध वाळी,
बदलै में लंका आई है॥
लँका अपमान सवै कोनी,
समरथ सूरां ज्यू मिट ज्यासी।
पण म्हाँ जीताँ रघुवंस्याँ नै,
सीता रा तो सपना आसी॥
लंकेसर शरण पड़ै थाँरी,
बीरां री आण कठै जासी
अै माथा नीचा झुकै नयीं,
कटसी तो ऊँचा कटज्यासी॥
ओ राख भरोसो तूं लिछमण,
सीता नै सोरी राखांला।
रघुवंस्याँ हळकी करी जियाँ,
म्हे कान नाक नयीं काटलां॥
लड़ताँ तो छाती खोल लड़ाँ,
मरणो धाराँ, हारा कोनी।
थाँ बाली बधियो हित्याराँ,
म्हे बियाँ मिनख माराँ कोनी॥
लंका रा सिंघ सूरमा यीं,
बैर्याँ नै पूठ दिखावैला।
तो इंद्र जिसा अभिमान्याँ री
कुँण चोट बजर री खावैला॥
'लिछमण' बोल्यो दुनियाँ मानै,
तूं धर रो बीर अनोखो है।
अधरम इन्याय अणहूँतै रो,
अभिमान करै ओ धोखो है ॥
सुरपणखा रो पग डिग्यो मेघ,
नारी री इज्जत नाखण नै
लिछमण जद हात उठायो हो,
'माँ-बहना' री पत राखण नै॥
अै राजवँसरी घर नार्यां
जे पुरस पराया ताकेली
धरती रो धरम कठै जासी,
दुनियाँ सत कुंकर राखैली॥
नारी रो चरित हुयाँ निबळो,
मरजादा री जड़ गळ ज्यासी
सिसटी री सीवाँ टूटेली,
जद मिनख डाँगरा रळ ज्यासी॥
भँवरा ज्यूँ मरद भुवैं घर रा,
घरनार फिड़कल्याँ ज्यूँ बण सी
धरती रो रूप किसो होसी,
मन्दोदर मेघ कियाँ जणसी॥
फुठरापो किसो लुगायाँ रो,
घर-घर में पाप खिंडावण नै।
भूवा रो रूप बिगाड़्यो मैं,
लँका री नाक बचावण नै॥
पण बाप थारलै दोस हीण-
-नारी नै नरक दिखायो है।
सीता नै चोर नहीं लायो,
लंका रो काळ बुलायो है॥
रघुवंस्याँ सागै सको नहीं,
संधी करलेणी चोखी है।
महाराणी अवध धणी वाली,
लँका स्यूँ झलणी ओखी है॥
मेघो बोल्यो तूँ भोळो है,
संधी तो मरियाँ होवैली
लिछमण अहड़ी उळझाई है,
धरती पर लोथाँ सोवैली॥
तैं भली जाण कीनी होसी,
पण हुई जकी अण होती ही।
सुरपणखा ऊपर उठ्यो हात,
लँका नै एक चुनोती ही॥
दुनियाँ तो जाणै एक बात,
तैं नाक म्हाँरली काटी है।
बदलै में कसर राखद्याँ तो-
-लँका री मुड़दी माटी है ॥
पत कियाँ रवै, जावै कुंकर,
म्हे जाणा हाँ, तू जावण दे।
आ समर भोम है सूर जियाँ,
तीखा तीराँ नै आवण दे ॥
कह मेघ जद कबाण उठा लीनी,
जद बाण बीर रा चालै हा।
अै काळ जिसा जोधा जूझै,
धरती रा पड़दा हालै हा॥
दोनूयीं जोध अपर बळीया,
जद डोर कान तक खींचै हा।
पलकाँ में बीजळ पळकै ही,
पल-पल में जाड़ां भींचै हा॥
आँध्याँ रा उठै भतूळा सा,
लपटाँ जाग़, जळ बरसावै।
दिन ढळग्यो सुभट ढळै कोनी,
दोनां में हार किसो खावै ॥
छेकड़ मेघै रो ब्रिम बाण,
लिछमण ने तिरवाळो आयो।
लंका रा विज्य संख बाज्या,
रघुवंस्याँ रो दळ घबरायो॥
सुण संखनाद नै आ पूगा,
जोधा बिखरयोड़ा अठै, बठै।
बो भगत विभिषण रोळो सुण,
आयो लिछमण री लोथ जठै॥
देख्यो ऊभो है मेघनाद,
घायल लोयाँ स्यूँ भीज्योड़ो।
राती आँख्याँ स्यू ताकै हो,
सूरापो जम पर रीझ्योड़ो॥
नैड़ो आ बोल्यो राम भगत,
हिंवड़ै स्यूँ लाल लगा लेवाँ।
पण रावण अण नीति अड़ग्यो,
अधरम रो साथ कियाँ देवाँ॥
ठोकर खा लंका नै छोड़ी,
म्हारै मन में नहीं बाकी है।
छोटै भाई री भरी सभा,
मोटै पत चोखी राखी है॥
बेटा मत दोस मनै दीजै,
रामा दळ में रळ ज्यावण रो
खोटो बरताव मरण सिरसो,
म्हारै सागै हो रावण रो॥
मेघो बोल्यो है फोट तनै,
बोलण नै मरे मुलक धाती।
बैर्याँ रै पगाँ पड्यो पापी,
फाटी कोनी थारी छाती॥
रघुवंस्याँ रो गोलो बणग्यो,
धिर्कार हुयो थारो जीणो।
आछो डोब्यो रै लाज हीण,
लँका रो पाणी लाखीणो॥
कर करम नरक रै कीड़ै सो,
तूँ धजा धरम री बण्यों फिरै।
आखी लँका स्यूँ घात कर्याँ,
ठोकर रो बदलो कियाँ घिरै॥
उण भरी सभा में रावण री,
सूरां नै मरणो भावै हो।
तूं लंकेसर रो भाई हो,
कायर ज्यूँ संधी चावै हो॥
है घूड़ जीवणै मैं थारै,
तूं मिनख इसो है अपरोगो।
बा लात तनै नहीं बड़ी बात ,
है खाल खिंचावण रै जोगो॥
जीवण रो मोह इसो काका,
तूँ बोल्यो हीणा री भाषा।
स्वाभीमान लंक रो झुक ज्यासी,
आ कियां करी उळटी आसा॥
अपमान किस्यो जै दी ठोकर,
मोटो भाई तो बाप जिस्यो।
मरियाँही काळख नहीं मिटै,
कुळ कळँक कर्यो तैं करम इस्यो॥
बण जलम भोम रो घाती तूँ,
बैर्याँ रै सरणै आयो है।
तैं लाज मारदी जणनी नै,
जिण घणी आस ले, जायो है॥
ऊँचौड़ै वंस बिसेसर में,
नूँ जलम्यों नावँ डबोवणीयों।
है कोढ़ जात रों करम हीण,
वीरावाळी पत खोवणीयों॥
दाणै पाणी री लाज लोप,
लंका रो लूण हराम कियो।
मरणै स्यूं माड़ी बात करी,
कायर ज्यूँ कोझो काम कियो॥
बो देश द्रोह स्यूँ बड़ो पाप,
धरती पर और किस्यो होवै?
आ दुनियाँ माफ करै कोनी,
जे जुगां-जुगां तक तूँ रोवै॥
हो राज मुकट रो कोड घणो,
काका तूँ पहली कैं देतो।
हूं कर देतो युवराज तनै,
अधिकार म्हारलो ले लेतो॥
भायाँ स्यूँ बैर बसा मूरख,
सुख कियां जीवतो पावैलो?
लंका में धूड़ उड़ै उण दिन,
जद तू राजा बण आवैलो॥
लंका रो एक-एक जोधो,
लंका री आण लियाँ मरसी।
लारै विधवावाँ रै ज्यासी,
तू राज दूबळाँ पर करसी॥
तैं जोगो राज हुवै थारो,
सूरापो तनै न छाजै लो।
लंका रो राजा लंका में,
तूं दास राम रो बाजैलो॥
बो डोळ नहीं काका थारो
सूराँ ज्यूँ दुनियाँ कदर करै।
तूं जीवै इसो जीवणो है,
जे मिनख हुवै तो डूब मरै॥
थारो मुख देख्याँ घणो पाप,
कै मेघ लंक नै जावै हो।
बो भगत विभिषण तेजहीण,
ऊभो मन में दुख पावै हो॥