मौसम वांरै खातर

पेट री ओळख सूं

बधग्यो है आगै

जठै उण रो अरथाव

सोवणो अर उभावणो तकात रैय जावै

अेक वो अबोध!

पेट में पचाय चुक्यो है

मौसम नै

रुजगार री अंतसी

इंछावां सूं लदड़-पदड़ कर

सोवणी अर उभावणी री परिभाषा

गमाय चुक्यो है

वां में अर उण में जितरो

मोटो फरक

वां दोवां छोड़ राख्यो है

वे मौसम ने मौसम रैय देवणौ चावै

अर वो मौसम नै

ओळख बिहूणो करणो चावै

गुनैगार री कूंत अजेस बाकी।

स्रोत
  • पोथी : सवाल ,
  • सिरजक : चेतन स्वामी ,
  • प्रकाशक : राजस्थान प्रगतिशील लेखक संघ जयपुर खातर ,
  • संस्करण : 1