मरू मायड़ रा मिसरी मधरा

मीठा गटक मतीरा।

सौनैं जिसड़ी रेतड़ली पर

जाणै पन्ना जड़िया,

चुरा सुरग स्यूं अठै मेलग्यो

कुण इमरत रा घड़िया?

आं अणमोलां आगै लुकग्या

लाजां मरता हीरा।

मरू मायड़ रा मिसरी मधरा

मीठा गटक मतीरा।

कामधेणु रा थण ही धरती

आं में दूया जाणै,

कलप बिरख रै फल पर स्यावै

निलजो सुरग धिंगाणै।

लीलो कापो गिरी गुलाबी

इन्द्र धणख सा लीरा।

मरू मायड़ रा मिसरी मधरा

मीठा गटक मतीरा।

कुचर कुचर नै खुपरी पीवो

गंगाजळ सो पांणी,

तिस तो कांई चीज भूख नै

ईं री घूंट भजाणी,

हरि-रस हूंतो फीको, रस

जे पी लेती मीरा!

मरू मायड़ रा मिसरी मधरा

मीठा गटक मतीरा।

स्रोत
  • पोथी : कन्हैयालाल सेठिया समग्र (राजस्थानी) ,
  • सिरजक : कन्हैयालाल सेठिया ,
  • प्रकाशक : राजस्थान परिषद, कोलकाता ,
  • संस्करण : प्रथम
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