पांवणा दांई जावता मानखां रै

भूलग्यो? थूं म्हारो जायो है!

म्हारी क्यारां अर म्हारा धोरा,

थनैं गोदयां मांय खिलायो है।

म्हारी छात्यां नैं खूंदतो,

नगरां रा गेला रूंधतो

भूलग्यो रे बांका छैला!

थूं म्हारा दूधां न्हायो है।

बटाऊ रे! बावड़जा पाछो,

नगरां रो पाणी कोनी आछो,

बठै कठै आम रो रूंखड़ो

जिणरो मीठा फळ खायो है।

म्हारा हिवड़ै मांय हीरा भरया है,

हेतर तो सई अठै मोती धरया है

कियां मिलसी थनैं इमरत बठै?

जठै सगळां रो जीव तिसायो है।

स्रोत
  • पोथी : राजस्थली लोकचेतना री राजस्थानी तिमाही ,
  • सिरजक : आशा शर्मा ,
  • संपादक : श्याम महर्षि ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी साहित्य-संस्कृति पीठ
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