जीव झबळकै मनड़ौ जूझै

लोक-लाज तद किणविध सूझै?

जीव

पेट नैं घणौ भुळायौ

भूखै मन नैं घणौ जुळायौ,

कद लग राखै

आंकस भूख

पेट मिनख नैं घणौ घुळायौ!

पेट कसाई पापी हुयग्यौ

जात-धरम रौ जीव अमूझै

रोटी सट्टै

इज्जत बिकगी

रोटी खातर आंख्यां सिकगी,

काण-कायदा

छूट्या सगळा

बैमाता कै लेख लिखगी!

जीव जगत रौ बैरी हुयग्यौ

कामधेनु तद किणविध दूझै

मन

मंगळ रौ सरब रुखाळौ

भूख चाकी तो मांगै गाळौ

पंचायतिया

करै न्याय जद

क्यूं नीं ले ले पेट अटाळौ

हेवा हुयग्यौ जीव दमन रौ

अरथ मिनख रौ किण नैं बूझै।

स्रोत
  • पोथी : जागती जोत ,
  • सिरजक : रवि पुरोहित ,
  • संपादक : भगवतीलाल व्यास
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