आखी रात

पीड़ सूं

कुरळावती रैयी

तावड़ै सूं तप्योड़ी

मुरधर री धरती

उण रै

फफोलां माथै

चांदणी रो लेप

लगावतो रैयो

आभै रो चांद

नीं बोल्या दोनूं

एक सबद

पण रचीजग्यो

महाकाव्य प्रीत रो

जे काळजो हुवै

कंवळो

पतियारो हुय जावै

पीड़ रो

नीं पड़ै जरूत

प्रीत नै

पंखां री

बा कर लेवै

जातरा

आभै सूं धरती

अर धरती सूं

आभै तांई

आपै ई।

स्रोत
  • पोथी : कंवळी कूंपळ प्रीत री ,
  • सिरजक : रेणुका व्यास 'नीलम' ,
  • प्रकाशक : बोधि प्रकाशन