मछुआरा

दिनूगै सूं पैलां

झूंपड़पट्टी नैं छोडता

नाव, जाळ लेय’र

समंदर बिचाळै जावता।

नाव हिचकोला खावै

मछुआरा चप्पू चलावै

लैरां रा थपेड़ां बिच्चै

माछलियां जाळ में फंस जावै।

म्हारो जीव

फंस्योड़ी माछली री भांत

तड़फै है

अर सोचै-

काश म्हनैं आवतो

ऊंदरां अर कबूतरां री भांत

जाळ काटणो,

संकट में फंस अर मुगती पावणो।

स्रोत
  • पोथी : राजस्थली राजस्थानी लोकचेतना री तिमाही ,
  • सिरजक : श्यामसुंदर टेलर ,
  • संपादक : श्याम महर्षि ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी संस्कृति पीठ