मुं पर मुखोटौ लगा लेवै लोग

जरा सी बात नैं बधा देवै लोग

पै'ली आंख में फेर दिल में बसै

फेरूं घर में आग लगा देवै लोग

आपरै आदमी नैं दोस्त कैवै सगळा

दोस्तां नैं दुश्मन बणा लेवै लोग

मेरी आवण री बात जद भी होवै

कांटां सूं गेलै नैं सजा देवै लोग

चुप चाप देखतो रहूं किं नीं बोलूं

जितणो जी कर बितो सत्ता लेवै लोग

सता-सता’र मार दे मिनखां नैं पै'ली

फेरूं झूठा आंसूं बहा लेवै लोग

जितनौ ज्यादा जुल्म करै जो भी

उणनै आंख्यां पर बिठा लेवै लोग

जो मिनख साच बोलै जमानै में

उणनै सूळी पर चढ़ा देवै लोग

जाणै कै पाप कर्या पिछलै जलम में

कै मर्यां पछै जळा देवै लोग।

स्रोत
  • पोथी : राजस्थली ,
  • सिरजक : अवकाश सैनी ,
  • संपादक : श्याम महर्षि ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी साहित्य संस्कृति पीठ