काले मैं विसार

कर्यो हतो

के मारा मयला अंगास मैं

एक नवो हूरज उगेगा

नवु उजवारु थायगा

नवं फूलं उगड़ेगा

श्यारे आरी लीलु लीलु धायगा

नै ताजी रुपारी

खुसी-खुसी नी नवी वस्ती वसैगा

पण...

आयं तो

सप्पा लीलू वरी ग्यू

हेताय वगीसा मैं

जेर नी वेलड़ी फरी गई।

वारे वा!

नकली हूरज

नकली उजवारु

नकली फूलं

नकली मनकं

नै नकली वस्ती नो

आवो केवो विसार कर्यो हतो

के आपड़ं थकीज

उगाई ग्यो?

स्रोत
  • पोथी : वागड़ अंचल री ,
  • सिरजक : मणि बावरा ,
  • संपादक : ज्योतिपुंज ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी ,
  • संस्करण : Prtham