हर काची-पाकी

काया रै भांडै

वै लगा दी है-

अेक लाय।

उणसूं

वांरै घरां मांय

हो रैयो है

अवस ही चानणो

पण हर काया लागी

उण लाय सूं

राख बणतो जा रैयो है

उण काया मांय

रैवण वाळो मिनख।

स्रोत
  • पोथी : मंडाण ,
  • सिरजक : संजय आचार्य ‘वरुण’ ,
  • संपादक : नीरज दइया ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण