लाँपीया नी वात, नैं थाय

लाँपीयो तौ,

लाँपीयोस कैवाय।

खेतरँ ने हेडै ,

वीड़ा मँय कै

वगड़ा मँय,

हेत्ते उगी जाए।

सोपों सार खाय,

ने लाँपीयौ टारी जाए।

सेतरँ मय भराय,

तौ उतरतो जाए, ऊंडौ

जणी पाखती ऊँ पै,

पेली आडैऔं नै खेसाय।

सोमासा मएँ

साँटा पड़तँ मएँ

आमरा खाय नें

जगा मँय उतरी जाए

लाँपीयो सार नों

बीजड़ो है

उगी जाए, नै फेर

लाँपीयोस थाए।

लाँपीया नों जीवनदर्शन

प्रक्रति थकी संघर्ष,

डोंगर मय

थोड़े पाणी उगवौं, जीब्बू

सोपँ हारु सार नै फेर

आगले वरस सार उगाड़वा

नव लाँपिया सोडी जाएं

कठोर जीवणजीवी

जिवबा वारा आदमी, संघर्ष करैं

सिद्धान्त अमर राखवा

वाँय बीज सोडी जँएं।

स्रोत
  • पोथी : वागड़ अंचल री ,
  • सिरजक : अटल उदयपुरी ,
  • संपादक : ज्योतिपुंज ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी ,
  • संस्करण : Prtham