अड़दीक रातरनौ

उटी नै

हेंडवा लाग्यौ तो

धोतियां नी लांग हाई नै

केवा लागी कै,

क्या वगर क्ये जई र्या हौ?

मे क्यू

तारू नै सोरं नु दुक देकातु ती

तमनै भूकै मरतै वेटातु नती

ऐटले

कईकं काम धन्दौ हौदवा जाऊँ हूँ।

केवा लागी,

पेलो राजा पण क्या वगर ग्यौ हतौ।

बार वरै बुद्ध बणी पासो फरयो

पण

मुं जाणु हूँ के तमै आकी उमर फरौगा

तो क्ये काम नै मलैगा।

खाली हात पासा आवौगा।

आको जमारो भटकी ने बुद्धु बणी घेरे पासा आवोगा।

स्रोत
  • पोथी : वागड़ अंचल री राजस्थानी कवितावां ,
  • सिरजक : देवी लाल जानी ,
  • संपादक : ज्योतिपुंज ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृति अकादनी बीकानेर ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण